Thursday, March 18, 2010

महिला बिल और सोनिया का आम आदमी प्रेम

आशुतोष
महिला आरक्षण बिल में बड़ी आग है। संसद हो या फिर सड़क चर्चा हर जगह गरम है। विरोधियों को ये पच ही नहीं रहा है कि महिलाएं किचन से निकल कर कैबिनेट तक पर हावी हो जाएं और मर्द बेचारे हवा फांकते रह जाएं। उधर समर्थकों को नई क्रांति दिख रही है। इस बहस में सोनिया गांधी बल्ले-बल्ले हैं। उनके लिये तो पार्टी का नया वोटबैंक तैयार हो रहा है।
महिलाओं को वोटबैंक के तौर पर कभी हिंदुस्तान में देखा ही नहीं गया। जातियों पर डोरे डाले गये। धार्मिक गुटों को अपना बनाने के लिये रोटीयां बेली गईं लेकिन औरत वो तो अबला है, बेचारी कहां जायेगी। सोनिया को लगा कि इस तबके को भुनाया जा सकता है तो राष्ट्रपति चुनने के लिये तमाम हैवीवेट राजनेताओं के बीच उन्हें प्रतिभा पाटिल नजर आईं और लोकसभा अध्यक्ष के तौर पर मीरा कुमार। और जब महिला बिल पर कांग्रेस के भारी भरकम नेताओं की सांस फूलने लगी तो सोनिया ने साफ कहा बिल राज्यसभा से पास करवावो या फिर रास्ता नापो।
बात सिर्फ महिलाओं तक नहीं है। मनमोहन और सोनिया की जुगलबंदी कांग्रेस नाम की लंगड़ी पार्टी को अपने दोनों पैरों पर खड़ा करने की जुगाड़ मे हैं। इसके लिये पार्टी की काफी बारीकी से 'री-ब्रांडिग' की जा रही है। बिलकुल उसी तरह जैसे इंग्लैंड की लेबर पार्टी ने पहले नील किनाक और बाद मे टोनी ब्लेयर के नेत्तृत्व में लेबर की 'पोजीशनिंग' की। और लेबर पार्टी 'न्यू लेबर' बन गयी। जो पार्टी ब्रिटेन में समाजवादी और ट्रेड युनियन नीतियों के लिये जानी जाती थी उसे 'लेफ्ट' से खिसका कर 'सेंटर' मे लाया गया। लेबर पार्टी ने 1995 में अपने संविधान की धारा 4 मे संशोधन कर 'पब्लिक सर्विस के नेशनलाइजेशन' यानी राष्ट्रीयकरण के अपने मूलभूत सैद्धांतिक वादे को ही हटा दिया। यानी पार्टी अब सरकार मे आने के बाद नेशनलाइजेशन के लिये प्रतिबद्द नहीं है। पार्टी ने बदलते समय के मुताबिक अपने सोशल एजेंडे को बदला और बाजारबाद के करीब हो गयी। 1995 में किये गये इस बदलाव ने पार्टी को ब्रिटेन के मध्यवर्ग का चहेता बना दिया। और इसी मिडिल क्लास के सहारे लेबर ने 1997 मे ऐतिहासिक जीत हासिल की।
लेबर पार्टी ने 1977 की करारी हार के बाद काफी बुरे दिन देखे थे। उसका वोट प्रतिशत काफी घट गया था। वैसे ही जैसे 1996 की हार के बाद कांग्रेस के खत्म होने की भविष्यवाणियां होने लगी थी। लगातार चुनावों में हार किसी को भी तोड़ने के लिये काफी था लेकिन 2004 की अप्रत्याशित जीत ने उसमें संजीवनी का संचार किया और कांग्रेस के रणनीतिकारों ने एनडीए की हार से सबक लिया। जीडीपी और सेंसेक्स मे उछाल शाइंनिंग इंडिया का खूबसूरत एहसास तो देता है लेकिन इससे जीतने लायक वोट नहीं मिलते। वाजपेयी सरकार ने विकास के स्तर पर कतई खराब काम नहीं किया था। विकास दर लगातार 6 फीसदी बनी रही। उनकी गलती इतनी सी थी कि वो अपने सोशल एजेंडे को नहीं बदल पायी और न ही आर्थिक सुधारों को गांव, देहात और गरीब से जोड़ पायी।
कांग्रेस ने बीजेपी की गलतियों से सीखा। और शाइनिंग इंडिया के समक्ष आम आदमी का नारा दिया और सरकार में आने के बाद नरेगा और किसानों की कर्ज माफी पर ध्यान दिय़ा। और इसका फायदा भी उसे मिला 2009 में। चुनाव जीतने के बाद उसने इस एजेंडे को और गति दी। तीन स्तर पर योजना बनी। पहला, वोटबैंक पॉलिटिक्स के मद्देनजर मुस्लिमों को लुभाने के लिये रंगनाथ मिश्र कमेटी की सिफारिश के आधार पर अल्पसंख्यक तबके को आरक्षण की वकालत, बटला हाउस एनकाउंटर पर सवाल खड़े करने की कोशिश और बजट मे अल्पसंख्यक तबके के लिये अलग से वित्तीय प्रावधान। लालू मुलायम का साथ छोडना इस योजना की ही कड़ी है। दूसरे, पार्टी को गांव देहात और दरिद्र नारायण के करीब लाने के लिये राहुल गांधी का गरीबों के घर रात गुजारना, दलित बस्तियों में रहना, उनके दुख दर्द सुनना आदि आदि। और तीसरे सरकारी स्तर पर आर्थिक सुधार के एजेंडे को मानवीय चेहरा देने की कोशिश करना।
सरकार ने अपने 2010 के बजट मे सोशल सेक्टर मे वित्तीय खर्च मे 37 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है तो महिला और बाल विकास मद में 50 फीसदी का इजाफा। बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य पर जानबूझकर खासा ध्यान दिया जा रहा है। बेरोजगारी दूर करने के लिये नरेगा सरकार की कारगर स्कीम पहले से ही थी और अब उसपर और भी जोर दिया जा रहा है। शिक्षा मे आमूलचूल बदलाव करने में कपिल सिब्बल जुटे हैं। कपिल एक तो कक्षा दस और बारह के पाठ्यक्रम और परीक्षा को आसान बना कर शहरी मध्यवर्ग को अपना बनाने मे लगे हैं तो देहात को ध्यान में रख 14 साल तक की उम्र तक के बच्चों के लिये शिक्षा को मुफ्त और अनिवार्य करने का जाल बुना जा रहा है। अशिक्षित महिलाओं को साक्षर बनाने के लिये 'नेशनल लिट्रेरी मिशन' का नाम बदलकर 'साक्षर भारत' कर दिया गया है। स्वास्थ्य के मुद्दे पर हर जिले मे हेल्थ सर्वे और नरेगा के तहत 15 दिन से ज्यादा काम करने वालों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत लाना पार्टी की 'री-ब्रांडिग स्ट्रेटजी' का ही हिस्सा है। साथ ही गांव देहात में डाक्टरों की मौजूदगी को अनिवार्य बनाने का भी कार्यक्रम जारी है। ऐसे में महिला आरक्षण को अकेले देखना गलत होगा। सोनिया टोनी ब्लेयर के रास्ते पर हैं। ब्लेयर 1997 चुनाव के पहले कहते थे - प्रधानमंत्री बनने का बाद वो तीन चीज करेंगे - शिक्षा, शिक्षा और शिक्षा। सोनिया भी यही कह रही हैं आम आदमी, आम आदमी और आम आदमी। बस एक ही चिंता है कहीं बीच मे मंहगाई न खड़ी हो जाये।

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