गले में नोटों का अजगर

‘डैडी, क्या यह कोई सांप है?’, टीवी पर सुश्री मायावती के गले में नोटों की माला की तस्वीरें देखकर मेरे पांच साल के बेटे ने मुझसे पूछा। निश्चित ही वह समाज में मौजूद भौतिकवाद के इस प्रतीक पर कोई गहरी टिप्पणी नहीं कर रहा था। नोटों की वह माला वाकई किसी सांप सरीखी ही दिखाई दे रही थी।
एक अजगर, जो धीरे-धीरे अपने शिकार का दम घोंट देता है। जिस तरह से सुश्री मायावती एक मानव एटीएम बन गई थीं, उससे धनाढच्य भारतीयों द्वारा अपनी दौलत के प्रदर्शन की मिसालों में नया मुकाम जरूर बनेगा। पैसों का यह सांप तो खैर दूसरे स्तर पर था, लेकिन यह देखने लायक चीज है कि हमारे देश में अमीर लोग किस तरह शादियों और सालगिरहों की पार्टियां आयोजित करते हैं ताकि दुनिया को बता सकें कि ‘उनके पास पैसा है!’ पैसा होने का फायदा ही क्या, अगर आपके नाते-रिश्तेदारों, यार-दोस्तों, पड़ोसियों और यहां तक कि अजनबियों को भी इसके बारे में पता ही न चल सके?
मुंबई में कुतुब मीनार से भी ऊंचे एक कांक्रीट टॉवर का निर्माण चल रहा है। इसे कई किलोमीटर दूर से भी देखा जा सकेगा। यह एक व्यावसायिक घराने का आशियाना होगा। मैं जन्मदिन की एक ऐसी पार्टी के बारे में जानता हूं, जिसमें शामिल होने वाले सभी बच्चों को तोहफे के रूप में नाइकी के एयर स्नीकर दिए गए थे।
मैं खुद ऐसी बर्थ डे पार्टियों में शामिल हुआ हूं, जिनमें चार साल के बच्चों के लिए आदमकद सिंड्रेला के आवागमन के साधनों का बंदोबस्त किया गया था और फॉक्स फामरूला कार का रेसिंग ट्रैक बिछाया गया था। टीवी पर ‘द बिग फैट इंडियन वेडिंग’ नामक एक शो आता है, जिसमें अमीर घराने टीवी वालों को अपनी शादी की कवरेज करने की अनुमति देते हैं। मैं इस शो का केवल एक ही एपिसोड बर्दाश्त कर सका था।
शो में शादी के कार्यक्रम हफ्ते भर तक दिल्ली, राजस्थान और बाली में चलते रहे थे। इस दौरान पांच सौ मेहमान इधर से उधर होते रहे। लेकिन अंत में वही हुआ, जो सभी शादियों में होता है यानी एक लड़का और एक लड़की परिणय सूत्र में बंध गए। एक अन्य भारतीय शादी के बारे में इंटरनेशनल हेरॉल्ड ट्रिब्यून ने हाल ही में मुखपृष्ठ पर एक स्टोरी छापी। इस बार खबर नोएडा के एक गांव से थी। एक किसान ने अपनी जमीन बेच डाली और बेटे की शादी के लिए एक हेलीकॉप्टर किराए पर ले लिया।
ऐसे बरतावों की पैरवी में एक तर्क दिया जा सकता है। ये कहा जा सकता है कि यदि किसी ने पैसा बनाया है तो उसे यह अधिकार है कि वह उसका जैसा चाहे उपयोग करे। दरअसल हमें तो खुश होना चाहिए कि आखिरकार भारतीय पैसों के मामले में अपना संकोच तोड़ रहे हैं। फिर यदि कोई सुश्री मायावती को पैसों का अजगर या पैसों का हाथी ही भेंट करना चाहे तो भला इसमें दिक्कत क्या है?
तब भी किसी-न-किसी स्तर पर यह ठीक नहीं लगता। जब मैं अपने बच्चों को टीवी पर या किसी पार्टी में पैसों का अश्लील प्रदर्शन करते देखता हूं तो कहीं-न-कहीं मुझे बुरा लगता है, क्योंकि इससे मेरे बच्चे को यह संदेश जाता है कि सफल लोग यही सब करते हैं। जीवन का अर्थ यही है। मुझसे कड़ी मेहनत करने को इसीलिए कहा जाता है ताकि मैं पैसा बना सकूं, नोटों को अपने चेहरे से लगा सकूं और दुनिया को यह बताने के लिए पैसा फूंक सकूं कि मेरा भी कोई वजूद है।
धन के प्रदर्शन से विनम्रता, संवेदनशीलता और आत्मनियंत्रण जैसे मूल्यों की क्षति होती है। विजेतागण युवा पीढ़ी को प्रेरित करते हैं और यदि समाज के विजेतागण इसी हवाई अंदाज में जिएंगे तो बच्चे उसका भी अनुकरण करना चाहेंगे। पैसे के शोरगुल में समाज के अन्य लोगों जैसे शिक्षकों, ईमानदार पुलिस अधिकारियों और चिकित्सकों द्वारा किया गया योगदान बौना हो जाता है।
संभव है कि ये लोग इतने अमीर न हों, लेकिन इसके बावजूद वे बच्चों के लिए बेहतर रोल मॉडल हैं। इसी वजह से मैं देश के अमीरों से यह अनुरोध करना चाहूंगा कि वे अपने धन का प्रदर्शन न करें। शांत रहें। हमें मालूम है, आपके पास पैसा है। यदि आप वाकई हमें यह जताना चाहते हैं कि आपके पास कितना पैसा है तो इसके आंकड़े अपनी वेबसाइट पर डाल दें, लेकिन इस तरह तमाशा न बनाएं। आपने इतना पैसा बनाया, इससे हम प्रभावित हुए हैं। बहुत खूब। दस में दस अंक। शाबाश! लेकिन हमें साधारण ही बने रहने दीजिए।
हालांकि सभी अमीर लोग ऐसे नहीं होते। दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक वॉरेन बफे, (जिनकी कुल संपत्ति २ लाख करोड़ रुपयों से भी अधिक है) अब भी ओमाहा के एक साधारण तिमंजिले कॉटेज में रहते हैं। अमेरिका में उनकी काफी इज्जत की जाती है। उन्हें अपने पैसों का प्रदर्शन करने की जरूरत नहीं। सिलिकॉन वैली में अपने दम पर अपना जीवन बनाने वाले सैकड़ों करोड़पति हैं, जो टी-शर्ट और जींस पहनकर काम करने जाते हैं और चमक-दमक वाली अमीरी को मुंह चिढ़ाते हैं। भद्दापन संपन्नता का जरूरी हिस्सा नहीं है। हालांकि शालीनता अमीर और रसूखदार भारतीयों के लिए अब भी एक नई चीज ही है, लेकिन फिर भी उसे अपनाया जा सकता है।
इसका यह मतलब नहीं कि अमीर विलासिता के साथ नहीं जी सकते। हालांकि निजी और सार्वजनिक विलासिता में एक अंतर होता है। यदि उन्हें ऐसा करके ही संतोष मिलता है तो वे अपने घर पर सोने की तश्तरियों में खाना खा सकते हैं और एवियन वॉटर से नहा सकते हैं। लेकिन यदि उनके धन का सार्वजनिक प्रदर्शन हो रहा हो तो ऐसा करने से पहले उन्हें दो बार सोचना चाहिए।
यदि सुश्री मायावती को नोटों की माला पहनकर आत्मिक खुशी मिलती है तो इस पर बहस करना मुश्किल है। वे हजार रुपए के नोटों से अपने कमरे का वॉलपेपर बना सकती हैं, लेकिन लाखों रुपयों की नोटों की माला पहनकर उन्हें भारत के बच्चों के सामने उसका प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। उनके चाटुकार और वे लोग जो यह मानते हैं कि पैसा ही महानता का परिचायक है, इसके लिए जरूर उनकी सराहना कर सकते हैं। हालांकि यदि ज्यादा नहीं तो कुछ ऐसे भी होंगे, जो ऐसा न करें।
हम नहीं चाहते कि हमारे बच्चे ऐसे बरतावों का अनुकरण करें। हम चाहते हैं कि वे सच्चे नेताओं का अनुकरण करें। वे नेता, जो श्रेष्ठ मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं, समाज का भला करते हैं और लोगों की मदद करते हैं। वे जो संयम, संतुलन और विनम्रता का प्रदर्शन करते हैं। ये वे लोग हैं, जिन्हें हम वास्तव में अमीर कह सकते हैं। वह वीभत्स माला पहनने से सुश्री मायावती अमीर नहीं हो गईं। ऐसा करके वे नोटों के बंडलों के बीच फंसी एक असहाय महिला ही साबित हुईं, जो किसी अजगर की तरह उनके राजनीतिक कॅरियर का दम घोंट सकता है। उम्मीद है कि वे इसकी जकड़न से मुक्त हो सकेंगी।
चेतन भगत
लेखक अंग्रेजी के प्रसिद्ध युवा उपन्यासकार हैं।
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