सेक्स ने लव को दिया धोखा...

प्रिया शर्मा
21वीं शताब्दी के इस युग में आज संवाद के माध्यम वाकई काफी बदल गए हैं। इंटरनेट की भूल-भुलैया अब कंप्यूटर की कैद से निकलकर हमारे मोबाइल तक पहुंच गई है। ऑरकुट की जगह अब फेसबुक और ट्विटर ने ले ली है। दौड़ती-भागती इस जिंदगी में अखबार की सुर्खियां पढ़ने का सुख अब चाय की चुस्कियों के साथ नहीं मिलता। ... लेकिन इन सबके बीच जो अब तक नहीं बदली वो है सिनेमा की ताकत। आज भी न्यूज चैनल्स चाहे कितनी भी विविधता और वर्चुअल ग्राफिक्स के सहारे खबरों को आम आदमी से जोड़ने की कोशिश कर लें लेकिन वो एक दर्शक के मन-मस्तिष्क पर वो छाप नहीं छोड़ पाते जो सिनेमाहॉल से 3 घंटे बाद बाहर निकलने पर एक दर्शक खुद में महसूस करता है। आज भी सिनेमा वो हथियार है जिसमें समाज को बदलने की अदभुत क्षमता है। कई बार ये हथियार 'थ्री इडियट्स' के रूप में हमें अपने दिल पर हाथ रख कर 'AAL IZ WELL' कहकर अपनी जिंदगी की कठिनाइयों का मुकाबला करना सिखाता है, तो कई बार ये हमारे सामने लव सेक्स और धोखा परोसकर हमें ये सोचने पर मजबूर करता है कि नैतिक, अनैतिक या फिर दूसरे शब्दों में कहें तो हमारी सही-गलत की ब्लैक एंड व्हाइट विचारधारा पर...'ग्रे शेड्स' कितने हावी होते जा रहे हैं। यानी असल जिंदगी की कड़वी हकीकतों को दर्शकों को सामने गालियों की मिर्च और सेक्स का मसाला लगाकर पेश करना ही क्या अब सिनेमा की मजबूरी बन गई है?
लव सेक्स और धोखा आज हिन्दी सिनेमा का एक बदलता हुआ क्रांतिकारी रूप है... इसलिए नहीं कि इस फिल्म ने सिनेमा में क्रिएटिविटी के एक नए आयाम को छुआ है बल्कि इसलिए क्योंकि इस फिल्म के प्रोमो में ही 40 बीप्स (अश्लील शब्द छिपाने के लिए लगाई जाने वाली आवाज) हैं और इसके एक गाने के बोल हैं... 'तू नंगी अच्छी लगती है'। ये वो शब्द हैं, जिन्हें फिल्म की जरूरत बताकर निर्देशक आपको सिनेमाघरों में खींचने की कोशिश कर रहे हैं। Hidden Camera के जरिए पूरी फिल्म में ये दिखाने की कोशिश की गई है कि कैसे आज के युवा किसी भी जगह सारी सीमाओं को तोड़कर अपनी भावनाओं पर काबू रखना भूल जाते हैं। डिपार्टमेंटल स्टोर से लेकर बेडरूम तक के सभी सीन खुफिया कैमरे से शूट किए गए हैं। इतना ही नहीं फिल्म में भरपूर गालियों का तड़का भी लगाया गया है।
आज सिनेमा भले ही परी कथाओं की दुनिया से बाहर निकलर हकीकत की जमीन पर तेज दौड़ लगा रहा हो लेकिन महज वास्तविकता दिखाने की आड़ में अपनी फिल्म को बेचने के लिए महिलाओं का सेक्स ऑब्जेक्ट की तरह इस्तेमाल किसी भी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता। मुझे याद है 1994 में जब मैं पांचवीं क्लास में पढ़ता था, उस वक्त करिश्मा कपूर और गोविंदा की फिल्म खुद्दार का एक गाना रिलीज हुआ था। गाने में करिश्मा कह रही थीं... सेक्सी सेक्सी सेक्सी मुझे लोग बोलें। बस करिश्मा का इतना बोलना, सेंसर बोर्ड को आपत्तिजनक लगा और गाने के बोल में से सेक्सी शब्द हटाकर बेबी शब्द से बदल दिया गया। खैर इस बात को अब काफी वक्त बीत चुका है और इस दौरान हमारे समाज में काफी बदलाव भी आया है। शायद फिल्म को रिलीज करने के साथ ही सेंसर बोर्ड अपनी इमेज को पहले से ज्यादा बोल्ड बनाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन क्या वाकई हम ये बदलाव चाहते हैं जिसमें खुद को मॉडर्न दिखाने के चक्कर में हम गालियों के जरिए अपने प्यार का इजहार कर रहे हों। मार्केटिंग के इस दौर में
जहां आमिर ने शहर-शहर वेष बदलकर लोगों के बीच अपनी फिल्म का प्रचार किया... तो शाहरुख ने शिवसेना के साथ हुए विवाद के सहारे अपनी फिल्म को प्रमोट करने के लिए ट्विटर पर अपने बयानों से पब्लिसिटी बटोरी। लेकिन इन सबके बावजूद आज भी लोगों को थिएटर तक खींचने का सबसे आसान तरीका है सेक्स। ये तो सभी जानते हैं कि सेक्स कल भी बिकता था और आज भी बिकता है। इसके बाद तो किसी और पब्लिसिटी स्टंट की जरूरत ही नहीं रह जाती। मगर सवाल अब भी वही है कि फिल्म दर फिल्म बढ़ता हुआ सेंसर बोर्ड का दायरा किस हद तक नंगेपन और गालियों के इस्तेमाल पर सिर्फ 'A' सर्टिफिकेट का टैग लगाकर संतुष्ट हो जाएगा। लगता है अब वो दिन दूर नहीं जब अपनी लाचारी की बैसाखी पर चलकर सेंसर बोर्ड को मजबूरन 'U', 'U/A' और 'A' सर्टिफिकेशन के बाद बहुत जल्द 'A+' कैटेगरी में फिल्मों को क्लीयरेंस देना पड़ेगा जिसमें वो सबकुछ होगा जो अब से पहले सिनेमाघरों में दिखाए जाने पर पाबंदी थी। लेकिन जरा सोचिए फिल्मों को समाज का आईना बताकर किस हद तक सच्चाई को हूबहू दर्शकों के सामने नाट्यरूपांतरण के जरिए पेश करना जायज है क्योंकि हम इस बात से कतई इंकार नहीं कर सकते कि हमारे समाज में ऐसे कई मुद्दे हैं जिनको पर्दे पर 'केवल वयस्कों के लिए' का बोर्ड लगाकर भी हम अपने सहकर्मियों और दोस्तों के साथ बैठकर नहीं देख सकते।
1 comments:
ya great portal yaar
March 18, 2010 at 2:05 PMPost a Comment